Gunjan Kamal

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प्यार जो मिला भी और नहीं भी भाग :- २६

                                                          भाग :- २६


छब्बीसवां अध्याय शुरू 👇


कभी-कभी ऐसा होता है कि वह चीज  जो हमें वास्तविकता की अनुभूति करा होते  है वें  कुछ देर के बाद ही हमें एहसास कराते हैं कि हमारे आस - पास जो कुछ भी हो रहा था वों तो हमारी ऑंखों का धोखा था। हम उस वक्त कल्पनाओं के घोड़ों पर सवार वें पल जी रहे थे जो हमारे दिमाग में चल रहा था।


मधु भी कल्पनाओं के समंदर में गोते लगा रही थी। उसे लग रहा था कि ऋषभ उसे दरवाजे पर खड़ा निहारे ही जा रहा है। उसकी ऑंखों में वह अपने लिए बेपनाह मोहब्बत महसूस कर रही है। धीरे - धीरे उसे अपने पास आते देखकर वह खुद में ही सिमट रही है। शर्म से उसने अपनी ऑंखें भी झुका ली है। ऋषभ उसके पास पहुॅंच कर उसके उस सलवार - कमीज की तारीफ कर रहा जिसे उसने उसकी ही पसंद को ध्यान में रखकर खरीदा था।


ऋषभ उसके झुके हुए चेहरे को अपने हाथों की उंगलियों से ऊपर उठा रहा है। उसे ऐसा करते हुए देखकर  मधु ने  अपनी ऑंखें बंद कर ली है। ऋषभ की आवाज फिर से सुनने के लिए बेकरार मधु के कान जब किसी और की आवाज सुनते हैं तो चौंक कर वह अपनी ऑंखें खोल देती है और सामने अपने बड़े भाई को देखकर उसे यह यकीन  हो जाता है कि कुछ देर पहले जो उसके साथ हो रहा था  वह हकीकत नहीं बल्कि स्वप्न था और वह  खुली ऑंखों से सपने देख रही थी।


आश्चर्य से अपनी छोटी बहन को पहले तो ऑंखें बंद किए हुए  और उसके बाद उसकी आवाज सुनकर ऑंखें खोलते हुए देखकर मधु के बड़े भाई रंजन ने उससे
पूछा 👇


रंजन :- तुमने अपनी ऑंखें क्यों बंद कर ली थी और जैसे ही तुमने  मेरी आवाज सुनी  ऐसे अपनी ऑंखें खोली जैसे तुम्हें यकीन नहीं हो रहा था कि मैं तुम्हें कुछ कह रहा हूॅं।


अपने बड़े भाई के सवाल सुनकर मधु सोच में पड़ गई कि अब क्या जवाब दें? उसे जवाब तो देना ही  होगा,  नहीं तो  उसके बारे में वह कुछ भी सोच सकते थे। मधु ने अपने बड़े भाई की तरफ देखते हुए कहा 👇


मधु :- कुछ नहीं भैया! मैंने अपनी ऑंखें इसलिए बंद कर ली थी कि क्योंकि एक छोटा उड़ने वाला कीडा़  मेरी ऑंखों में चला गया था जिस वजह से मेरी ऑंखें ही नहीं खुल रही थी। मैं उसी को निकालने की कोशिश कर रही थी कि तभी एकाएक से आपकी आवाज सुनी तो मैंने अपनी ऑंखें खोल दी। अब  लग रहा है कीड़ा निकल गया है, चुभ नहीं रहा है वह।


मधु के बड़े भाई रंजन ने थोड़ा नीचे झुक कर अपने कद से थोड़ी छोटी  अपनी छोटी बहन की ऑंखों में देखा और बोला 👇


रंजन :- ऑंखें तो लाल दिख रही है तेरी, लग रहा है कीड़ा अंदर ही है। ऑंखों में उड़ने वाले कीड़े जब चले आते हैं तो वें बहुत परेशान करते है, ऑंख खुलते ही नहीं है।  मेरे साथ भी बहुत बार ऐसा हुआ है लेकिन तू इससे घबराना नहीं है यह कोई बड़ी बात नहीं है। सबके साथ होता है ऐसा। यह सामान्य  बात है जिसके कारण रोने की बिल्कुल भी जरूरत नहीं है। मुझे मालूम है जैसे ही तुम पापा के पास पहुंचेगी तुम्हारा रोना शुरू हो जाएगा और पापा से कहोगी मैंने तुम्हें रुला दिया है।


अपने बड़े भाई की बातें सुनकर मधु अपनी बड़ी - बड़ी ऑंखें  को और भी बड़ी - बड़ी कर  कमर पर अपने दोनों हाथ रखते हुए वह कहती है 👇


मधु :-  आप झूठ क्यों बोल रहे है मैंने पापा के सामने कब आपकी शिकायत की?


अपनी छोटी बहन के इस तरह बोलने के अंदाज को देखकर  रंजन की हंसी छूट जाती है। वह कुछ देर हंसने के बाद अपने चेहरे पर मुस्कान रखते हुए कहता है 👇


रंजन :- अरे! मैं तो मजाक कर रहा था। तुम मेरा मजाक भी  नहीं समझ पाती हो।


मधु आश्चर्य से अपने बड़े भाई को देखकर और उसकी कही बातों को सुनकर  कहती है 👇


मधु :-  आज से पहले तो ऐसा कभी भी नहीं हुआ? आपका हृदय परिवर्तन तो मैंने अपनी ऑंखों और कानों से आज ही देखा और सुना है।


अपनी छोटी बहन की आश्चर्य से फैली  ऑंखें और बातें सुनकर फिर से रंजन हंसने लगता है तभी कमरे में दोनों के पिता किशन देव और माॅं आरती यह कहते हुए आते हैं कि  चलो जल्दी से! रेस्टोरेंट जाने में देर हो रही है।


रेस्टोरेंट में ऋषभ द्वारा किए गए इशारे पर मधु को  विश्वास नहीं हो रहा था। उसे अभी भी यही लग रहा था कि कहीं एक  घंटे पहले उसके घर में जो उसके साथ हो रहा था वह  रेस्टोरेंट में भी तो कहीं उसके साथ वही तो नहीं हो रहा है?


अपने दिमाग पर जोर देते हुए मधु ने फिर से अपने सामने देखा तो ऋषभ को अपनी तरफ देखते हुए ही पाया। वह भी उस तरफ देखने लगी जैसे पहचानने की कोशिश कर रही हो कि सच में ऋषभ उससे कुछ दूरी पर स्थित कुर्सी पर बैठा हुआ है।


मधु देखती है कि जहां पर वह ऋषभ को बैठा देख रही है वहीं पर उसके पास वाली कुर्सी पर उससे उम्र में छोटा दिख रहा लड़का बैठा है जो अपने चारों तरफ के नजारे देखने में व्यस्त है और उसके सामने दो औरतें साड़ी पहने बैठी है जिनका चेहरा तो वह नहीं देख पा रही है लेकिन इतना उसे अंदाजा हो रहा है कि ऋषभ उन दोनों से ही बातचीत कर रहा है और बातचीत करने के क्रम में उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ - जा रही है।


"यह तो मेरा भ्रम नहीं हो सकता इसका मतलब है ऋषभ सचमुच में इस रेस्टोरेंट में अपने परिवार के साथ आया है। मुझे इशारे से क्या वही  कहने की कोशिश कर रहा है जो  मैं समझ रही हूॅं लेकिन ऐसी हरकतें तो उसने कभी भी मेरे साथ पहले नहीं की है। आज इशारे से ये  कहने की कोशिश क्यों कर रहा है कि वह मुझसे बात करना चाहता है? मैं भी उससे बात करना चाहती हूॅं लेकिन कैसे बात करूं उससे?  किसी ने देख लिया तो ऋषभ का तो मालूम नहीं लेकिन मेरे जीवन में भूचाल जरूर आ जाएगा। हो सकता है बड़े भैया मेरी पढ़ाई भी छुड़वा दें। नहीं ...  नहीं... मैं ऐसी कोई भी गलती नहीं करूंगी जिससे कि मुझे मेरे लक्ष्य से दूर होना पड़े।"  मन ही मन में सोचती  मधु ने  फिर से अपनी नजरें उठाई तो देखा कि  ऋषभ उसे ही देख रहा है।


मधु को  अपने  ही ख्यालों में खोया हुआ देखकर उसके पिता ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा 👇


किशन देव :- बेटा! यदि तुम दोनों भूल गए हो तो तुम दोनों को मैं याद दिला दूं कि  यहां पर हमलोग खाना खाने आए हैं।  तुम लोग देख लो क्या खाना पसंद करोगे? आज तुम लोगों की पसंद का खाना ही  हम लोग भी खा लेंगे।


मधु और उसके बड़े भाई रंजन ने अपने पास खड़े वेटर को खाने का ऑर्डर दे दिया जिसे उसने अपने हाथ में पकड़ी छोटी सी डायरी में लिख लिया।


वेटर के वहां से जाने के बाद मधु की नजरें खुद -ब -खुद उस तरफ उठ गई जहां पर ऋषभ बैठा था। जब  उसने देखा कि ऋषभ तो वहां पर है ही नहीं, उसके मन में अनगिनत सवाल शोर मचाने लगें।


ऋषभ कहां चला गया था? क्या मधु और ऋषभ एक-दूसरे से मिल पाएंगे?  ये सारी बातें जानने के लिए जुड़े रहे इसके अगले अध्याय से।


क्रमशः


गुॅंजन कमल 💗💞💓


# उपन्यास लेखन प्रतियोगिता 


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2 Comments

Khushbu

05-Oct-2022 03:38 PM

Nice part 👌

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Palak chopra

29-Sep-2022 11:59 PM

Bahut khoob 💐👍

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